शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

फिर वो याद आए

आज फिर वो याद आए,
आहिस्ते से आना,
नजरें चुराना
बैठ जाना,
मुस्कुरा देना
और बगलें झांकना।
खामोश निगाहें बया करती़ हैं
अनगिनत अफसाने
फिर छेड़ देना बहस
आज के तरानों की
और डुब जाती है
चाय की चुश्कियों में।
फिर उठना
और चले जाना
रह जाते हैं
कई ऊलझे सवाल।
मैं जुट जाती हूं
सुलझाने में।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना

सर्वस्तुता मां सरस्वती देवी वीणा वादिनी।
नमो देव्यै नमः देवी नमो नारायणी।।

सर्व शक्ति दायिनी शब्दानां ज्ञान स्वरूपिणी।
महा विद्या,महा माया सर्वशक्ति दायिनी।।

जगत कल्याणमयी देवी नमो नमः।
नारायणी वासु देवी नमो नमः।।

सर्व सुख दायिनी देवी नमो नमः।
संकट हरणी पाप विमोचनी देवी नमो नमः।।

अक्षयमाला वीणा पुस्तक धारणी।
आर्या ब्रह्माणी सरस्वती महावाणी।।

सर्वकार्य फल दायनी देवी स्वरूपणी।
सर्व मांगलय मंगलमयी देवी नारायणी।।

ऊँ सरस्वतै देवी नमो नमः।
ऊँ वीणा वर वादिनी देवी नमो नमः।।



शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

मैंने आज क्या-क्या देखा

कली को फूल बनते देखा,
चिड़िया को डाल पर रोते देखा,
मां के आंसू छलकते देखा
मैंने आज क्या-क्या देखा।
सावन के बादल को गरजते देखा,
नदियों का विनाश-ताण्डव देखा,
सागर की लहरों को उफनते देखा,
मैंने आज क्या-क्या देखा।
लाइन में खड़े लोगों को देखा,
मंदिरों में भगवान को बिकते देखा,
भूख से लोगों को मरते देखा,
लाज से सिकुड़ती नारी को देखा,
मैंने आज क्या-क्या देखा।
डिग्रियों को जलते देखा,
लोगों को बिकते देखा,
अपने को पराया होते देखा,
गिरगिट को रंग बदलते देखा
मैंने आज क्या-क्या देखा।
दहेज से नारी को जलते देखा,
नारी को झंडा ढोते देखा,
नेता को चौराहे पर भाषण देते देखा,
नेता को कुर्सी से हटते देखा,
कुर्सी को कुर्सी से लड़ते देखा
मैंने आज क्या-क्या देखा।
सपनों को टूटते,लाशों को जलते देखा,
सुबह को शाम में ढलते देखा,
जिन्दगी को शामोशहर सिसकते देखा,
मैंने खुद को भीड़ में खोते देखा।

रविवार, 10 जनवरी 2010

बादल

आसमान में बादल छाये,
काले,सफेद,छोटे-मोटे,
कई – कई आकृतियों वाले,
आसमान में बादल छाये।
रिम-झिम जल बरसाते,
नदी-ताल-तल सब भर जाते,
देख किसान का मन हरषाता,
बच्चो का भी दिल बहलाता,
आसमान में बादल छाये।
चातक अपनी प्यास बुझाता,
मेढ़क टर्र – टर्र गीत सुनाता,
बिरहन को पिया की याद सताती,
धरती अपना रूप संवारती,
आसमान में बादल छाये।


गुरुवार, 7 जनवरी 2010

क्षणिकाएं

आँसू भरी निगाहों से अभी विदा कर आये हैं,
अपने मासूम अरमानों को अभी दफ़ना कर आये हैं,
सोचा था ज़िन्दगी को जिएंगे हम, पर,
जी न सके,अपने को ही जिंदा जला आए हैं हम।
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ज़िन्दगी भी इस कदर खुशनसीब होती है,
जहां हम होते हैं, ज़िन्दगी भी वहीं होती है।
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इस कदर ज़िन्दगी में खोये थे हम,
आँख खुली तो जाना,ज़िन्दगी क्या है।