आज फिर वो याद आए,
आहिस्ते से आना,
नजरें चुराना
बैठ जाना,
मुस्कुरा देना
और बगलें झांकना।
खामोश निगाहें बया करती़ हैं
अनगिनत अफसाने
फिर छेड़ देना बहस
आज के तरानों की
और डुब जाती है
चाय की चुश्कियों में।
फिर उठना
और चले जाना
रह जाते हैं
कई ऊलझे सवाल।
मैं जुट जाती हूं
सुलझाने में।
आहिस्ते से आना,
नजरें चुराना
बैठ जाना,
मुस्कुरा देना
और बगलें झांकना।
खामोश निगाहें बया करती़ हैं
अनगिनत अफसाने
फिर छेड़ देना बहस
आज के तरानों की
और डुब जाती है
चाय की चुश्कियों में।
फिर उठना
और चले जाना
रह जाते हैं
कई ऊलझे सवाल।
मैं जुट जाती हूं
सुलझाने में।