सोमवार, 29 मार्च 2010

गीत



मेरी दुनिया में आकर, मत जाओ।
क्या ख़ता हुई मुझसे मत जाओ।।

वो भी क्या दिन थे,जब हम मिले थे।
क़समें खाई हमने, न होंगे ज़ुदा कभी।।

डर लगता है कहीं, खो न दूं तुम्हें।
मेरी दुनिया में आकर, मत जाओ।।

ऐसा भी कभी होता, अपनों से रूठता है भला कोई।
जीवन के धूप-छाह में अक्सर ऐसे कई मोड़ आते हैं।।

इस जंग को भी जीत लेंगे हम।
हम तुम मिल रचेगे इतिहास नया।।

मेरी दुनिया में आकर, मत जाओ....।


शुक्रवार, 26 मार्च 2010

जागती आंखे

जागती आंखे
हर पल निहारे
सोचे कौन है
तारणहार
सुलझे-अनसुलझे
मसले
रोटी-कपडा़-मकान
या
माओवाद,आतंकवाद,
जातिवाद, पार्टीवाद
प्रादेशिकता,आंचलिकता
भाषायी,धार्मिक मसले
या
मंहगाई,बेरोजगारी
भूखमरी की मार
नारी व्यथा
भ्रूण हत्या
दहेज
शिक्षा
या
प्राकृतिक झंझावतों
को झेलता
इंसान
कौन
है
तारणहार

नेता,अभिनेता
पत्रकार,सामाजिक
कार्यकर्ता
नौकरशाह
योगीराज,महाराज
और
आधुनिक बाबा
या
खुद हम।



शुक्रवार, 19 मार्च 2010

चलते चलते

लक्ष्मण झूले पर
चलते चलते
लोगों और
मोटर साइकिलों
की आवाजाही
में
सलाम करते हुए
मुस्कुराकर
यूं चुप चाप
चले जाना
बन्दरों की
धमाचौकडी़
को निहारती
भागीरथी की
निर्मल
पावन
जीवनदायी जलधारा
में लुत्फ उठाते
युगल जोडे़
आज भी
दृश्य चलचित्र
की भांति
ज़हन में
कौंध उठते हैं।


गुरुवार, 11 मार्च 2010

वाह क्या चीज है

सिलवर,ब्लैक
बराऊन,चेरी
स्टाइलिस,स्लाइडिंग
स्लिम,सेक्सी
वॉव, क्या वॉडी है
सेमसंग,एलजी
मोटोरोला
फ्लाई,स्पाईस

जवां दिलों की धड़कन
नेटिंग,चेटिंग,सरफिंग
और कॉन्फ्रेनसिंग
कर लो दुनियां मुट्ठी में
वॉव, वाह क्या चीज है
मोबाइल।

रविवार, 7 मार्च 2010

आरक्षण

काफी दिनों के बाद आज जब मैं लिखने बैठी तो बहुत सारी बाते ज़हन में उठ रही हैं,समझ में नहीं आ रहा है कि शुरूआत कहां से करूं। मनोज सर हमेशा मुझसे कहते हैं कि कविता के अलावा और कुछ लिखो,चलिए फिर मैं आज से ही इसका श्रीगणेश करती हूं। आरक्षण शब्द काफी जाना पहचाना है। बचपन से ही सुनती आ रही हूं।हमारे जीवन में जैसे रच बस सा गया है। फेबिकोल के मजबूत जोड़ जैसा है,छुडा़ए छुटता ही नहीं।
संविधान में इसे सुशोभित किया गया है, तब से आज तक काफी फल-फूल रहा है, क्यों न हो हमारे कर्णधार,जो सत्ता को सुशोभित करने के साथ-साथ सामाजिक उत्थान में सदैव तत्पर रहते हैं,समाज का कल्याण ही जिनका एक मात्र उद्देश्य है। हमारे प्रिय नेताओं का तो सबसे मूल्यवान मुद्दा है आरक्षण। इसकी वज़ह से तो कई सरकारे आई और चली गई और तोहफे में आत्मदाह,आगजनी,खू़न-खराबा न जाने कितने मूल्यवान तोहफे दिए होंगे जो भुलाएं नहीं भुलाएं जाते,क्या करें,ये हम सबसे प्यार जो इतना करते हैं। कल 8 मार्च है महिला दिवस के नाम। कल महिला आरक्षण बिल पेश किया जाएगा। इसके नाम से ही सियासतदारों में होड़ मच गई है,महिलाओं के हित एवं कल्याण को ध्यान में रखते हुए महिला बिल में 50 प्रतिशत आरक्षण करने के लिए कटिबद्ध है और राजनीति भी गरमा गई है। क्या करें बिचारे काफी सालों से सुकार्य में लगे हैं,लेकिन सफलता ही नहीं मिली। देखते हैं कल क्या होता है,उम्मीद ज्यादा है क्योंकि सत्ता की सिरमौर्य महिलाओं के हाथ में ही है।
कुछ सवाल हैं जो मेरे ज़हन में कुलबुला रहें हैं क्या आज महिला आरक्षण की आवश्यकता है,जहां एक ओर हम कहते हैं कि स्त्री-पुरूष बराबर है,दोनों एक दूसरे के पूरक हैं तथा दोनों एक दूसरे के साथ कदम मिलाकर चल रहें है। महिला आरक्षण के नाम पर उसे पीछे ढकेलने जैसा नहीं होगा। महिलाएं अपना आत्म सम्मान तो पा चुकी हैं और कुछ पाने की राह पर सतत् अग्रसर हैं। महिला आरक्षण के नाम पर नौटकी नहीं तो और क्या। आरक्षण के नाम पर कहीं पीछे ढकेलने की साज़िश तो नहीं, नारी सशक्तिकरण के नाम पर छलावा तो नहीं। क्या आज इस आरक्षण की आवश्यकता है। क्या आरक्षण मिल जाने से मुद्दा खत्म हो जाएगा। डर है कि यह राजनीतिज्ञों की घटिया खेल का हिस्सा न बन कर रह जाए। उम्मीद पर तो दुनिया कायम है, देखते हैं क्या होता है।