शनिवार, 26 जून 2010

बारिश


बारिश की पहली बूंदों ने
पत्ता दर पत्ता धो डाला
धूल ,गर्द और मिट्टी
की चादर,बिछी थी
कितने दिनों, सालों, महिनों, वर्षों से
निखर उठे सुकोमल,चटकार रंगों वाले पत्तें।

बारिश की पहली बूंदों से स्पर्शित मिट्टी
सोधी खुशबू से मंहका खेत खलिहान
लाल मखमली कीड़ों ने स्वागत किया बूंदों का
निकल पड़े अगवानी में।

तप्त धरा की प्यास बूझी
खुशी के आंसू बन गए बादल
बरसे घुमड़-घुमड़कर
चमक उठी आंखें कृषक की
नव सृजन की आस में।

झूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
नर्तन करने लगी बूंदों संग
गुनगुनाने लगी सुमधुर संगीत
वर्षा ऋतु के आवन के।

गुरुवार, 17 जून 2010

ख़ामोश निगाहें












ख़ामोश निगाहें है ढूंढ रही
पहाड़ों,जंगलों और सड़कों में
आता नहीं जवाब कोई भी
सूनी राहों से।
ख़ामोश क्यूं हो गई जु़बान
इन विरानों में
चुप क्यूं हैं निगाहें
कहती क्यूं नहीं।

दिल के राज़ क्यूं नहीं खोलती
ओठों तक आते ही क्यूं रूक जाती
कह कर भी अनकही रह जाती हैं बातें
क्या कहें ,किससे कहें,कोई सुनता ही नहीं।
यही देख बस ख़ामोश हो जाती है निगाहें
इन कशमोकश में छलक जाती है आंखें
पी जाती है दर्द के प्याले
गुनने लगती है अफ़सानें।
ढूंढने लगती है ख़ामोश हो निगाहें
गुजरेंगे परवाने शायद इन्हीं राहों से।

गुरुवार, 3 जून 2010

प्रार्थना

प्रभू जी सुन लो अरज हमारी
तू ही रब्बा,तू ही मौला,तू ही पालनहार
प्रभू जी........................................।
छाया घनघोर अंधियारा,सुझे न राह कोई
तू ही बता, जाऊं मैं कहां प्रभू जी
प्रभू जी................................।
बन दीपक बरसा रहमत, ओ मेरे मौला
सुन ले पुकार मुझ गरीब की, ओ गरीब नवाज़।
तू ही ईसा,तू ही मूसा, तू ही पालनहार
प्रभू जी........................................।
तरस रही तेरे दरस को,अब तो आन मिलो प्रभू जी
तू ही श्याम, तू ही राम, तू ही पालनहार
प्रभू जी.........................................।
तेरे नूर में डूबा ऐ जग सारा, तेरे इश्क में रंगा ऐ तन मेरा
तू ही अल्ला, तू ही ख़ुदा, तू ही पालनहार
प्रभू जी..........................................।
लगन में झूमे तेरे , ऐ मन मस्त मेरा
आ तू भी झूम ले, ओ मेरे प्रभू जी।