सोमवार, 19 जुलाई 2010

मुझको प्यार है तुमसे




ऐ ज़िन्दगी मुझको प्यार है तुमसे
पल पल बीतती ज़िन्दगी,
हर पल नित नूतन रूप दिखाती
खटे-मीठे अनुभव दे जाती
अपने - पराएं का बोध कराती।



रूकना ,चलना, गिरना
फिर उठ कर चलना सिखलाती
रात-दिन, फिर रात के बाद
दिन का आनंद दिलाती ।



जीवन पथ के टेढे़-मेढे,पथरीले,
कंटक भरी राहों से गुजर कर
मंजिल तक पहुंचना, सबक़ सिखलाती।



रहगुज़र में रहबर बन जाती है
बिछा देती फूलों को कदमों तले
फिर लगा लेती गले
ऐ ज़िन्दगी मुझको प्यार है तुमसे।



मौत से प्यार करना सिखलाती
तू कितनी ज़िन्दादिल है ज़िन्दगी
इश्क से खुदा को मिलाती है ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी, हां मुझको प्यार है तुमसे।

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

चटकती धूप



सुबह की धूप आज कितनी खिली है
कई दिनों बाद
मानों सूरज की किरणें बुहार रही
धरती के हरीतिम आंचल को।

स्वच्छ,निर्मल,स्वछंद विचरण कर रही
ताल तलैया, नहर नदी, खेत खलिहान
पहाड़ पठार ,सागर समुन्दर,नभ और गगन
चहुंओर बांह फैलाएं चटकती धूप लहराएं अपने आंचल को।

पीत हरित रंगों में समा गई धरा
अपलक निहार रही मैं अनुपम,अलौकिक,अद्भुत प्रकृतिक सौन्दर्य को
चौंधिया गई आंखें,खिल गई अविस्मृत मुस्कान ओठों पर
खो गई आनन्द परमानन्द के संयोजन में और
चमक उठती हैं आंखें जैसे हरी घास को देखकर गाय की।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

साधना



समुन्द्रतल से निकली,सागर में समाई
पर्वतीय शीलाखण्डों को दुलराती
अलहड़ सी मदमाती वनखण्डों
को सींचती,सहलाती निकली।


गर्विणी सी तोड़ती मानवीय दर्प तटों को
बन मानिनी सी,सकुचाती प्रिया मिलन
की आस में अंजुमन की धार बन जाती।


कभी उन्मत हो चट्टानों,पथरीलें राहों से गुजरती
दिवानी सी बह निकली अन्जान राहों से
उछलती,उफनती दुधियाई शीतलता की बौछार करती।


गुनगुनाती,नर्तन करती,गुदगुदाती संवेदनाओं को
रेतों, मैदानों को संजीवनी बन प्राण फूंकती
धर्म को संस्कारित कर ठोस धरातल देती।


जीवन की निस्सारता को पूर्णता देती
मल, मलीनता,धर्मान्धता, करकटों को छांकती
नवस्पूर्त कर जीवन प्रदान करती बह निकली।

बोझिल कदमों से,उन्नीदी आंखों से निहारती
समाहित हुई सागर में,करती निरन्तर साधना साध्य की
सतत् प्रवहमान आनंद के परमानंद में।