बुधवार, 29 दिसंबर 2010

क्षणिका

उसने कहा साथ निभाएंगे,न जाने क्यूं चल दिए,

हम तकते रहे,सोचते रहे, जाने क्यूं चल दिए यूं

क्यूं लाड़ लड़ाया उन पलों को,जब यूं ही चले जाना था

आंखों से बहते आंसू ने पूछा थर्रथराते ओठों से

क्या हुई ख़ता तुझसे,जो चल दिए यूं मुंह मोड़ के

सांसों ने पूछा क्यूं रूक गई धड़कन,पूर्वी पवन के झोकें से

क्यूं बेखबर,बेजान किया,इस बेमरउवत पवन के झोकें ने।।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

लम्हें


यादों की गलियारों से कुछ लम्हें

अकसर याद आते हैं

छोड़ जाते हैं ओठों पर हल्की सी मुस्कान

और गुदगुदा जाते हैं उन पलों को।

और कुछ दे जाते हैं आंखों में नमी

छेड़ जाते हैं तार दर्द के वीणा की

झंकृत कर देते हृदय के लहरों को

रस लहरी निकल पड़ती है आंखों के कोरों से।

और कुछ लम्हें यूं ही अकसर याद आते हैं

कोहरें से लिपटी चादर हो जैसी,कुछ अनकही सी

कुछ अनसुनी सी,कुछ अनदिखी सी।