बारिश की पहली बूंदों ने
पत्ता दर पत्ता धो डाला
धूल ,गर्द और मिट्टी
की चादर,बिछी थी
कितने दिनों, सालों, महिनों, वर्षों से
निखर उठे सुकोमल,चटकार रंगों वाले पत्तें।
बारिश की पहली बूंदों से स्पर्शित मिट्टी
सोधी खुशबू से मंहका खेत खलिहान
लाल मखमली कीड़ों ने स्वागत किया बूंदों का
निकल पड़े अगवानी में।
तप्त धरा की प्यास बूझी
खुशी के आंसू बन गए बादल
बरसे घुमड़-घुमड़कर
चमक उठी आंखें कृषक की
नव सृजन की आस में।
झूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
नर्तन करने लगी बूंदों संग
गुनगुनाने लगी सुमधुर संगीत
वर्षा ऋतु के आवन के।