काफी अंतराल के बाद आज फिर आपकी ख़िदमत में उपस्थित हुई हूं चंद पंक्तियों के साथ इस उम्मीद से कि मुझे आपसे पहले जैसा ही प्यार एवं आशिर्वाद मिलेगा। स्वयं की बिमारी से जूझती हुई पर आप से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकती।
चाहत
जीने की चाह में इतने मशरूफ़ हुए कि
जी रहे हैं हम।
सोचा तो लगा कि कहां जी रहे हैं हम
दिन गिन रहे हैं हम।
उम्मीद है कि दामन छोड़ती ही नहीं कि
जी रहे हैं हम।
जीने की चाह ने आज इस मुकाम पे ला छोड़ा कि
एक तरफ जीने की उम्मीद और एक तरफ
नाउम्मीदी ने रखा है दामन थाम, इस कशमोकश में हैं कि
जाए तो कहां जाए हम।
इस तड़प ने फिर जला दी शमां चाहत जीने की
और फिर से जी रहे हैं हम।।