बुधवार, 4 अगस्त 2010

सुख



सुख क्या है

क्षणिक अनुभूति

आनंद

राहत

सफलता

पूर्णता

खूशी

शान्ति या फिर

पूर्णता का इनाम

या फिर

चाह की पूर्ति

आकांक्षा की तृप्ति

या फिर

महत्वकांक्षा पर विजय

इच्छाओं का शमन

या फिर

दुख की पहचान ही

सुख है।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

मुझको प्यार है तुमसे




ऐ ज़िन्दगी मुझको प्यार है तुमसे
पल पल बीतती ज़िन्दगी,
हर पल नित नूतन रूप दिखाती
खटे-मीठे अनुभव दे जाती
अपने - पराएं का बोध कराती।



रूकना ,चलना, गिरना
फिर उठ कर चलना सिखलाती
रात-दिन, फिर रात के बाद
दिन का आनंद दिलाती ।



जीवन पथ के टेढे़-मेढे,पथरीले,
कंटक भरी राहों से गुजर कर
मंजिल तक पहुंचना, सबक़ सिखलाती।



रहगुज़र में रहबर बन जाती है
बिछा देती फूलों को कदमों तले
फिर लगा लेती गले
ऐ ज़िन्दगी मुझको प्यार है तुमसे।



मौत से प्यार करना सिखलाती
तू कितनी ज़िन्दादिल है ज़िन्दगी
इश्क से खुदा को मिलाती है ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी, हां मुझको प्यार है तुमसे।

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

चटकती धूप



सुबह की धूप आज कितनी खिली है
कई दिनों बाद
मानों सूरज की किरणें बुहार रही
धरती के हरीतिम आंचल को।

स्वच्छ,निर्मल,स्वछंद विचरण कर रही
ताल तलैया, नहर नदी, खेत खलिहान
पहाड़ पठार ,सागर समुन्दर,नभ और गगन
चहुंओर बांह फैलाएं चटकती धूप लहराएं अपने आंचल को।

पीत हरित रंगों में समा गई धरा
अपलक निहार रही मैं अनुपम,अलौकिक,अद्भुत प्रकृतिक सौन्दर्य को
चौंधिया गई आंखें,खिल गई अविस्मृत मुस्कान ओठों पर
खो गई आनन्द परमानन्द के संयोजन में और
चमक उठती हैं आंखें जैसे हरी घास को देखकर गाय की।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

साधना



समुन्द्रतल से निकली,सागर में समाई
पर्वतीय शीलाखण्डों को दुलराती
अलहड़ सी मदमाती वनखण्डों
को सींचती,सहलाती निकली।


गर्विणी सी तोड़ती मानवीय दर्प तटों को
बन मानिनी सी,सकुचाती प्रिया मिलन
की आस में अंजुमन की धार बन जाती।


कभी उन्मत हो चट्टानों,पथरीलें राहों से गुजरती
दिवानी सी बह निकली अन्जान राहों से
उछलती,उफनती दुधियाई शीतलता की बौछार करती।


गुनगुनाती,नर्तन करती,गुदगुदाती संवेदनाओं को
रेतों, मैदानों को संजीवनी बन प्राण फूंकती
धर्म को संस्कारित कर ठोस धरातल देती।


जीवन की निस्सारता को पूर्णता देती
मल, मलीनता,धर्मान्धता, करकटों को छांकती
नवस्पूर्त कर जीवन प्रदान करती बह निकली।

बोझिल कदमों से,उन्नीदी आंखों से निहारती
समाहित हुई सागर में,करती निरन्तर साधना साध्य की
सतत् प्रवहमान आनंद के परमानंद में।

शनिवार, 26 जून 2010

बारिश


बारिश की पहली बूंदों ने
पत्ता दर पत्ता धो डाला
धूल ,गर्द और मिट्टी
की चादर,बिछी थी
कितने दिनों, सालों, महिनों, वर्षों से
निखर उठे सुकोमल,चटकार रंगों वाले पत्तें।

बारिश की पहली बूंदों से स्पर्शित मिट्टी
सोधी खुशबू से मंहका खेत खलिहान
लाल मखमली कीड़ों ने स्वागत किया बूंदों का
निकल पड़े अगवानी में।

तप्त धरा की प्यास बूझी
खुशी के आंसू बन गए बादल
बरसे घुमड़-घुमड़कर
चमक उठी आंखें कृषक की
नव सृजन की आस में।

झूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
नर्तन करने लगी बूंदों संग
गुनगुनाने लगी सुमधुर संगीत
वर्षा ऋतु के आवन के।

गुरुवार, 17 जून 2010

ख़ामोश निगाहें












ख़ामोश निगाहें है ढूंढ रही
पहाड़ों,जंगलों और सड़कों में
आता नहीं जवाब कोई भी
सूनी राहों से।
ख़ामोश क्यूं हो गई जु़बान
इन विरानों में
चुप क्यूं हैं निगाहें
कहती क्यूं नहीं।

दिल के राज़ क्यूं नहीं खोलती
ओठों तक आते ही क्यूं रूक जाती
कह कर भी अनकही रह जाती हैं बातें
क्या कहें ,किससे कहें,कोई सुनता ही नहीं।
यही देख बस ख़ामोश हो जाती है निगाहें
इन कशमोकश में छलक जाती है आंखें
पी जाती है दर्द के प्याले
गुनने लगती है अफ़सानें।
ढूंढने लगती है ख़ामोश हो निगाहें
गुजरेंगे परवाने शायद इन्हीं राहों से।

गुरुवार, 3 जून 2010

प्रार्थना

प्रभू जी सुन लो अरज हमारी
तू ही रब्बा,तू ही मौला,तू ही पालनहार
प्रभू जी........................................।
छाया घनघोर अंधियारा,सुझे न राह कोई
तू ही बता, जाऊं मैं कहां प्रभू जी
प्रभू जी................................।
बन दीपक बरसा रहमत, ओ मेरे मौला
सुन ले पुकार मुझ गरीब की, ओ गरीब नवाज़।
तू ही ईसा,तू ही मूसा, तू ही पालनहार
प्रभू जी........................................।
तरस रही तेरे दरस को,अब तो आन मिलो प्रभू जी
तू ही श्याम, तू ही राम, तू ही पालनहार
प्रभू जी.........................................।
तेरे नूर में डूबा ऐ जग सारा, तेरे इश्क में रंगा ऐ तन मेरा
तू ही अल्ला, तू ही ख़ुदा, तू ही पालनहार
प्रभू जी..........................................।
लगन में झूमे तेरे , ऐ मन मस्त मेरा
आ तू भी झूम ले, ओ मेरे प्रभू जी।