यादों की गलियारों से कुछ लम्हें
अकसर याद आते हैं
छोड़ जाते हैं ओठों पर हल्की सी मुस्कान
और गुदगुदा जाते हैं उन पलों को।
और कुछ दे जाते हैं आंखों में नमी
छेड़ जाते हैं तार दर्द के वीणा की
झंकृत कर देते हृदय के लहरों को
रस लहरी निकल पड़ती है आंखों के कोरों से।
और कुछ लम्हें यूं ही अकसर याद आते हैं
कोहरें से लिपटी चादर हो जैसी,कुछ अनकही सी
कुछ अनसुनी सी,कुछ अनदिखी सी।
एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंसाधना जी, क्या बात है आप बहुत दिन बाद फिर ब्लॉग जगत में आयीं ...
जवाब देंहटाएंपर आई एक बहुत सुंदरा रचना लेकर ... इस प्यारी सी कविता के लिए आभार !
संजय जी एवं इन्द्रनील जी आपका बहुत ही धन्यवाद,जो आपने पुनः मेरी रचना को इस काबिल समझा-धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंऔर कुछ लम्हें यूं ही अकसर याद आते हैं.....
Cherish the moments ...
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हर्षिता जी,
जवाब देंहटाएंयादों के लम्हों में बहुत ही कोमल भावों की अभिव्यक्ति छुपी है !
अच्छी रचना !
धन्यवाद,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन में यादें ही तो हमें एक आधार देती हैं।
जवाब देंहटाएंइन यादों को संजोकर रखिए। मन झंडु बाम हो गया। सुंदर पोस्ट।
आप सभी का बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता , साधना जी । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
जवाब देंहटाएंकृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।
सुंदर शब्दों का चयन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं ।
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