रविवार, 19 दिसंबर 2010

लम्हें


यादों की गलियारों से कुछ लम्हें

अकसर याद आते हैं

छोड़ जाते हैं ओठों पर हल्की सी मुस्कान

और गुदगुदा जाते हैं उन पलों को।

और कुछ दे जाते हैं आंखों में नमी

छेड़ जाते हैं तार दर्द के वीणा की

झंकृत कर देते हृदय के लहरों को

रस लहरी निकल पड़ती है आंखों के कोरों से।

और कुछ लम्हें यूं ही अकसर याद आते हैं

कोहरें से लिपटी चादर हो जैसी,कुछ अनकही सी

कुछ अनसुनी सी,कुछ अनदिखी सी।

11 टिप्‍पणियां:

  1. एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  2. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

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  3. साधना जी, क्या बात है आप बहुत दिन बाद फिर ब्लॉग जगत में आयीं ...
    पर आई एक बहुत सुंदरा रचना लेकर ... इस प्यारी सी कविता के लिए आभार !

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  4. संजय जी एवं इन्द्रनील जी आपका बहुत ही धन्यवाद,जो आपने पुनः मेरी रचना को इस काबिल समझा-धन्यवाद।

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  5. .

    और कुछ लम्हें यूं ही अकसर याद आते हैं.....

    Cherish the moments ...


    .

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  6. हर्षिता जी,
    यादों के लम्हों में बहुत ही कोमल भावों की अभिव्यक्ति छुपी है !
    अच्छी रचना !
    धन्यवाद,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  7. जीवन में यादें ही तो हमें एक आधार देती हैं।
    इन यादों को संजोकर रखिए। मन झंडु बाम हो गया। सुंदर पोस्ट।

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  8. बहुत सुन्दर कविता , साधना जी । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
    कृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
    लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।

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  9. सुंदर शब्दों का चयन
    बहुत बहुत शुभकामनाएं ।


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