गुरुवार, 19 नवंबर 2009

मैं अकेला

चौराहे पर खडा़ मैं अकेला
आगे – पीछे, दाएं-बाएं
जन कोलाहल, सड़कों पर सरकती गाडि़याँ
इंसान को ढोता इंसान
फिर भी मैं अकेला।
मर्माहत इंसान, अवमूल्यों की धूम
पश्चिमी चकाचौंध में उलझती जिन्दगी
आदर्शों की लाश पर खडा़ इंसान
स्पर्धा की सरपट दौड़,कुर्सी की होड़ा-होडी़
दानव संस्कृति को पछाड़ता इंसान
फिर भी मैं अकेला।।
प्राकृतिक झंझावतों को झेलता
जिजीविषा की खोज में तड़पता इंसान
जनसंख्या के विस्फोट में ढूढ़ते
भूखे-नंगे,लाचार,बेकार,दिशाहीन लोगों की भीड़
विध्वंसक बारूदों की ढेर में तलाशता शान्ति
शून्य को निहारता, उदास खडा़ मैं अकेला।।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

चेहरा

--- साधना राय
तेरा चेहरा
अमावस की रात में छिटकती चांदनी
गिरजे-गुंबदों से उठती दुआओं जैसा,
मन को बरबस खींच लेता है।

कशिश आंखों की,
चातक की प्यास जैसी,
हर पल याद दिलाती तेरी।

तेरी हंसी
बिजली-सी कौंध जाती है,
कंपित कर देती
हिय के तारों को।

ओ मेरे मीत !
मत रूठो,
चार दिन रैन बसेरा है,
न जाने फिर हम कहां,
बस याद रह जाएगी।

हंसी तेरी नगीने जैसी,
जड़ ले इन लबों पे,
लुत्फ उठा इन हसीन पलों का,
मृग शावक की किलोल में,
बालपन की निश्छलता में।

दुआ हे मेरी
हंसी से सुहासित कर
ज़िदगी अपनी !!!!
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