ज़िन्दगी भी क्या चीज है
वक्त बेवक्त ला खडी़ करती है।
ऐसे चौराहे पर
जहां सब कुछ ऊलझ जाता है
रह जाती है कुछ यादें मीठी सी।
उन पलों को जीते-जीते।
कब बन जाती है यादें
पता ही नहीं चलता।
होश में आते ही
लगते हैं सोचने
कैसे बन गई ये यादें।
वो लड़ना-झगड़ा और बेबाकी बातें
उलझना फिर सुलझाना।
बन आलोचक टांग खींचना
फिर मार्गदर्शक बन
स्वप्नद्रष्टा बनाना।
अचानक यूं अलविदा कह
चले जाना, हो जाता है जानलेवा।
और रह जाती हैं यादें।
जिन्दगी भी क्या है
नित्य नूतन रूप है दिखलाती
हो जाते हैं विवश जीने को
उन लम्हों को, उन यादों को।
वक्त बेवक्त ला खडी़ करती है।
ऐसे चौराहे पर
जहां सब कुछ ऊलझ जाता है
रह जाती है कुछ यादें मीठी सी।
उन पलों को जीते-जीते।
कब बन जाती है यादें
पता ही नहीं चलता।
होश में आते ही
लगते हैं सोचने
कैसे बन गई ये यादें।
वो लड़ना-झगड़ा और बेबाकी बातें
उलझना फिर सुलझाना।
बन आलोचक टांग खींचना
फिर मार्गदर्शक बन
स्वप्नद्रष्टा बनाना।
अचानक यूं अलविदा कह
चले जाना, हो जाता है जानलेवा।
और रह जाती हैं यादें।
जिन्दगी भी क्या है
नित्य नूतन रूप है दिखलाती
हो जाते हैं विवश जीने को
उन लम्हों को, उन यादों को।