शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

जीने दो

मेरा छोटा प्रयास यदि बाघ बचावो अभियान में योगदान दे सकता है तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी,क्योंकि यह हम सभी का कर्त्तब्य भी है कि इस धरा के सौन्दर्य को कभी न मिटाएं।

हम तुम
एक ही माल्लिक के बंदे
फिर क्यू हैं ये दुरियां
हमने तो नहीं बिगा़डा़
संतुलन इस धरा का
फिर क्यू नहीं
जीने देते हमें।
तुम हो विवेकशील पशु
हम हैं नृशंस पशु
बन बैठे धरा के नियंता
धन-लोलुपता की आड़ में
लूट लिए वनस्थलियां
बेघर कर डाला।
क्या हम चूं भी न करें
निकाल अपने खूनी पंजे
किया घात पर आघात
बन गए आदमखोर।
हम भी कभी थे
देश की आन, बान और शान
तुमने मिटाई हस्ती हमारी
हरितिम झिलमिल चादर को
किया तार-तार
शहंशा थे, हम
अपने जहां के
नृशंस पशु तुम
बन बैठे बाघखोर
कुछ ही तो
बचे हैं हम
बस भी करो
अब तो
जीने दो हमें।

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

नज़राना

सूरज से किरणें
चांद से चांदनी
बादल से पानी
सागर से
लहरें
सीप से मोती
दीपक से ज्योति
पत्तों से ओस की बूदें
फूलों से खुशबू
प्यार से चाहत
ओठों से मुस्कान
जीवन से आनंद
प्रिय ब्लॉगरों के लिए
लाई मैं यह खुबसूरत
नज़राना बोलों
स्वीकार करोंगे।

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

नन्हीं परी

आज घर आई एक नन्हीं परी,
काली,मोटी मासूम आंखों वाली।

चंपई रंगत लिए, काले घुघराले लटों वाली,
बादलों की ओट से झांकता चांद हो जैसे।

गुलाबी ओठों पर खिली हंसी सूरज की पहली,
किरण के स्पर्श से खिलता कमल हो जैसे।

नन्हें पद चापों से बज उठती हैं पैजनियां,
रून-झुन स्वर लहरी से हर्षित होता घर-आंगन।

आपना प्रतिबिम्ब निहारू,साकार हुआ सपना मेरा,
आज घर आई एक नन्हीं परी, महके जीवन मेरा।