--- साधना राय
तेरा चेहरा
अमावस की रात में छिटकती चांदनी
गिरजे-गुंबदों से उठती दुआओं जैसा,
मन को बरबस खींच लेता है।
कशिश आंखों की,
चातक की प्यास जैसी,
हर पल याद दिलाती तेरी।
तेरी हंसी
बिजली-सी कौंध जाती है,
कंपित कर देती
हिय के तारों को।
ओ मेरे मीत !
मत रूठो,
चार दिन रैन बसेरा है,
न जाने फिर हम कहां,
बस याद रह जाएगी।
हंसी तेरी नगीने जैसी,
जड़ ले इन लबों पे,
लुत्फ उठा इन हसीन पलों का,
मृग शावक की किलोल में,
बालपन की निश्छलता में।
दुआ हे मेरी
हंसी से सुहासित कर
ज़िदगी अपनी !!!!
*** ***
ओ मेरे मीत !
जवाब देंहटाएंमत रूठो,
चार दिन रैन बसेरा है,
न जाने फिर हम कहां,
बस याद रह जाएगी।
बहुत अच्छी रचना....!!
अच्छी है -
जवाब देंहटाएंसाधना की हर्षिता!
बधाई -
लड़की गोद लेने के लिए!
अच्छी कविता है। बधाई भी...।
जवाब देंहटाएंVERY GOOD. CONGRATS.
जवाब देंहटाएंshabdon se khel achchha laga !
जवाब देंहटाएंबधाई -
जवाब देंहटाएंलड़की गोद लेने के लिए!
achi lagi rachna
जवाब देंहटाएंन जाने फिर हम कहां,
जवाब देंहटाएंबस याद रह जाएगी।
बहुत अच्छी रचना....!!