रविवार, 15 अगस्त 2010




आप सभी को


स्वाधीनता दिवस

के शुभ अवसर पर

हार्दिक बधाई।

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

सैलाब



सैलाब बहा ले गया अनगिनत ज़िन्दगियां

रह गई तबाहियों का भयावह मंजर

है कौन जिम्मेदार इन तबाहियों का।


कई सवाल कौंध उठते रह रहकर ज़हन में

सोचने को मजबूर कर देते हैं

कौन है ज़िम्मेदार इसका।


इन हरी-भरी वादियों में घूमती थी परियां

अठखेलियां करती थी फूलों डालियां।


गाती थी हवाओं के संग राग-रागगिनी

छेड़ देती मधुर संगीत की धून लहरे

अलहड़ नदी की उन्मत्त ताल पर।


स्वर्गिक चित्रकारी खुदरत की

क्यूं बरपा गई कहर बन सैलाब का

दे गई न भूल पाने वाले जख्म।


हम यूं तकते रहे, कर न सके सामना

विवश,लाचार मूक दर्शक बन बस देखते रहे

तांडव मृत्यु के रौद्र,क्रूर,भयावह रूप का।


हां,हम है जिम्मेदार इस रूद्र तांडव का

विकास की अंधी दौड़ में छूट गई

हमारी जिम्मेदारियां इसके संरक्षण की।


जलती रह गई धरती हम रह गए मस्ती में

अनदेखा कर गए,खुद की कब्र खोदने में हो गए

मशरूफ इतने कि जान ही न सके।


कब पैरों तले सरक गई ज़मी और

हम देखते रह गए तबाहियों का मंजर

अब भी वक्त रहते संभल जाए

वरना मिट जाएगा नामोनिशान।


इस धरा का, हाथ मलते रह जाएगे

बहा ले जाएगा सैलाब न जाने कितनी ज़िन्दगियां

छोड़ जाएगा अनगिनत कई सवाल अस्तित्व पर।

बुधवार, 4 अगस्त 2010

सुख



सुख क्या है

क्षणिक अनुभूति

आनंद

राहत

सफलता

पूर्णता

खूशी

शान्ति या फिर

पूर्णता का इनाम

या फिर

चाह की पूर्ति

आकांक्षा की तृप्ति

या फिर

महत्वकांक्षा पर विजय

इच्छाओं का शमन

या फिर

दुख की पहचान ही

सुख है।