आप सभी को
स्वाधीनता दिवस
के शुभ अवसर पर
हार्दिक बधाई।
सैलाब बहा ले गया अनगिनत ज़िन्दगियां
रह गई तबाहियों का भयावह मंजर
है कौन जिम्मेदार इन तबाहियों का।
कई सवाल कौंध उठते रह रहकर ज़हन में
सोचने को मजबूर कर देते हैं
कौन है ज़िम्मेदार इसका।
इन हरी-भरी वादियों में घूमती थी परियां
अठखेलियां करती थी फूलों डालियां।
गाती थी हवाओं के संग राग-रागगिनी
छेड़ देती मधुर संगीत की धून लहरे
अलहड़ नदी की उन्मत्त ताल पर।
स्वर्गिक चित्रकारी खुदरत की
क्यूं बरपा गई कहर बन सैलाब का
दे गई न भूल पाने वाले जख्म।
हम यूं तकते रहे, कर न सके सामना
विवश,लाचार मूक दर्शक बन बस देखते रहे
तांडव मृत्यु के रौद्र,क्रूर,भयावह रूप का।
हां,हम है जिम्मेदार इस रूद्र तांडव का
विकास की अंधी दौड़ में छूट गई
हमारी जिम्मेदारियां इसके संरक्षण की।
जलती रह गई धरती हम रह गए मस्ती में
अनदेखा कर गए,खुद की कब्र खोदने में हो गए
मशरूफ इतने कि जान ही न सके।
कब पैरों तले सरक गई ज़मी और
हम देखते रह गए तबाहियों का मंजर
अब भी वक्त रहते संभल जाए
वरना मिट जाएगा नामोनिशान।
इस धरा का, हाथ मलते रह जाएगे
बहा ले जाएगा सैलाब न जाने कितनी ज़िन्दगियां