मंगलवार, 10 अगस्त 2010

सैलाब



सैलाब बहा ले गया अनगिनत ज़िन्दगियां

रह गई तबाहियों का भयावह मंजर

है कौन जिम्मेदार इन तबाहियों का।


कई सवाल कौंध उठते रह रहकर ज़हन में

सोचने को मजबूर कर देते हैं

कौन है ज़िम्मेदार इसका।


इन हरी-भरी वादियों में घूमती थी परियां

अठखेलियां करती थी फूलों डालियां।


गाती थी हवाओं के संग राग-रागगिनी

छेड़ देती मधुर संगीत की धून लहरे

अलहड़ नदी की उन्मत्त ताल पर।


स्वर्गिक चित्रकारी खुदरत की

क्यूं बरपा गई कहर बन सैलाब का

दे गई न भूल पाने वाले जख्म।


हम यूं तकते रहे, कर न सके सामना

विवश,लाचार मूक दर्शक बन बस देखते रहे

तांडव मृत्यु के रौद्र,क्रूर,भयावह रूप का।


हां,हम है जिम्मेदार इस रूद्र तांडव का

विकास की अंधी दौड़ में छूट गई

हमारी जिम्मेदारियां इसके संरक्षण की।


जलती रह गई धरती हम रह गए मस्ती में

अनदेखा कर गए,खुद की कब्र खोदने में हो गए

मशरूफ इतने कि जान ही न सके।


कब पैरों तले सरक गई ज़मी और

हम देखते रह गए तबाहियों का मंजर

अब भी वक्त रहते संभल जाए

वरना मिट जाएगा नामोनिशान।


इस धरा का, हाथ मलते रह जाएगे

बहा ले जाएगा सैलाब न जाने कितनी ज़िन्दगियां

छोड़ जाएगा अनगिनत कई सवाल अस्तित्व पर।

17 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है सब...

    एक उम्दा रचना.

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  2. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  4. Bahut hi baazib baat kahi hai aapne.

    Agar hum abhi nahin chete to kal bahut der ho jaayegi.

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  5. समीर जी,संजय जी,विरेन्द्र जी,राजभाषा हिन्दी एवं हास्यफुहार सभी का बहुत ही धन्यवाद टिप्पणी देने के लिए।

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  6. प्रकृति से छेड़छाड़ कितनी भयावह हो सकती, सचेत करती कविता.
    सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें

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  7. harshita ye to shuraat hai..jaagrukta paida karti ek sundar kalam!

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  8. आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

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  9. मनोज जी,रचना जी,पारूल जी,और डिम्पल जी आपका बहुत आभार एवं धन्यवाद टिप्पणी देने के लिए।

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  10. श्री योगेन्द्र जी,सत्यप्रकाश जी आपका धन्यवाद।

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  11. सानु जी आपका दिल से शुक्रिया टिप्पणी देने के लिए।

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  12. अति मार्मिक अभिव्यक्ति .......
    इसमें लोकहित की बात उठाई है।
    आपको
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई है॥
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  13. अनाप शनाप विकास .. अंधाधुन प्रकृति से खिलवाड़ ही इन सब का कारण है ....अच्छे रचना है आपकी ,...

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