आँसू भरी निगाहों से अभी विदा कर आये हैं,
अपने मासूम अरमानों को अभी दफ़ना कर आये हैं,
सोचा था ज़िन्दगी को जिएंगे हम, पर,
जी न सके,अपने को ही जिंदा जला आए हैं हम।
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ज़िन्दगी भी इस कदर खुशनसीब होती है,
जहां हम होते हैं, ज़िन्दगी भी वहीं होती है।
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अपने मासूम अरमानों को अभी दफ़ना कर आये हैं,
सोचा था ज़िन्दगी को जिएंगे हम, पर,
जी न सके,अपने को ही जिंदा जला आए हैं हम।
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ज़िन्दगी भी इस कदर खुशनसीब होती है,
जहां हम होते हैं, ज़िन्दगी भी वहीं होती है।
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इस कदर ज़िन्दगी में खोये थे हम,
आँख खुली तो जाना,ज़िन्दगी क्या है।
आँख खुली तो जाना,ज़िन्दगी क्या है।
इस कदर ज़िन्दगी में खोये थे हम,
जवाब देंहटाएंआँख खुली तो जाना,ज़िन्दगी क्या है।
अच्छी अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंBahut AAcha laga.Aap aise hi likhti rahe. Shubhkamnay...
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंAAp me likhne ka ek alag aur bahut sundar style hai. Aapki yeh rachna bahut aachi lagi.Badhai.
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद,इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
जवाब देंहटाएंइस कदर ज़िन्दगी में खोये थे हम,
जवाब देंहटाएंआँख खुली तो जाना,ज़िन्दगी क्या है।
-बहुत खूब बात कही!! बधाई.,
तीनों क्षणिकाओं में अलग-अलग और सुंदर भाव - और कोशिश करें - शुभकामनाएं नव वर्ष २०१० की मंगल कामना के साथ.
जवाब देंहटाएंसोचा था ज़िन्दगी को जिएंगे हम, पर,
जवाब देंहटाएंजी न सके,अपने को ही जिंदा जला आए हैं हम ..
कमाल के शेर कहे हैं ........ खुद को जला कर ही कवि जन्म लेता है ........