लक्ष्मण झूले पर
चलते चलते
लोगों और
मोटर साइकिलों
की आवाजाही
में
सलाम करते हुए
मुस्कुराकर
यूं चुप चाप
चले जाना
बन्दरों की
धमाचौकडी़
को निहारती
भागीरथी की
निर्मल
पावन
जीवनदायी जलधारा
में लुत्फ उठाते
युगल जोडे़
आज भी
दृश्य चलचित्र
की भांति
ज़हन में
कौंध उठते हैं।
चलते चलते
लोगों और
मोटर साइकिलों
की आवाजाही
में
सलाम करते हुए
मुस्कुराकर
यूं चुप चाप
चले जाना
बन्दरों की
धमाचौकडी़
को निहारती
भागीरथी की
निर्मल
पावन
जीवनदायी जलधारा
में लुत्फ उठाते
युगल जोडे़
आज भी
दृश्य चलचित्र
की भांति
ज़हन में
कौंध उठते हैं।
इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।
जवाब देंहटाएंअंतर्मन के मंथन को व्यक्त करती रचना....
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंयहाँ अवश्य देखे http://kavikokas.blogspot.com
Is atukant kawita men bhee lay ki kamee naheen lagati
जवाब देंहटाएंजीवनदायी जलधारा
में लुत्फ उठाते
युगल जोडे़
आज भी
दृश्य चलचित्र
की भांति
ज़हन में
कौंध उठते हैं।
बीती यादों का पुनरागमन यूं ही हुआ करता है
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने मेरा मनोबल बढाया।
जवाब देंहटाएंभागीरथी की
जवाब देंहटाएंनिर्मल
पावन
जीवनदायी जलधारा
में लुत्फ उठाते ..
बीते पल का खूबसूरत चित्रण .... बहुत अच्छा लिखा है ...
दिगन्बर नासवाजी आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है,धन्यवाद आपकी की प्रतिक्रिया के लिए।
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