बारिश की पहली बूंदों ने
पत्ता दर पत्ता धो डाला
धूल ,गर्द और मिट्टी
की चादर,बिछी थी
कितने दिनों, सालों, महिनों, वर्षों से
निखर उठे सुकोमल,चटकार रंगों वाले पत्तें।
बारिश की पहली बूंदों से स्पर्शित मिट्टी
सोधी खुशबू से मंहका खेत खलिहान
लाल मखमली कीड़ों ने स्वागत किया बूंदों का
निकल पड़े अगवानी में।
तप्त धरा की प्यास बूझी
खुशी के आंसू बन गए बादल
बरसे घुमड़-घुमड़कर
चमक उठी आंखें कृषक की
नव सृजन की आस में।
झूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
नर्तन करने लगी बूंदों संग
गुनगुनाने लगी सुमधुर संगीत
वर्षा ऋतु के आवन के।
sundar kavita. maanson ki vadhai.
जवाब देंहटाएंबहुत नीचे जा कर मिली है आपकी कविता!ऊपर क्या डाल रक्खा है ?
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बहुत अच्छी कविता!
वर्षा की तासीर ही ऐसी है कि उसके पासंग मेँ सृजनात्मकता मुखरित हो ही जाती है।धरती क्या समूची प्रकृति ही रचती है नया बहुत कुछ।कवि मन इस से निर्लेप या निरपेक्ष कैसे रह सकता है।वर्षा की बूंदो की प्रवृति आपकी कविता की प्रकृति मेँ ढल गई।बधाई !
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबारिश की पहली बूंदों के क्या कहने
बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता..पहली बारिश के रंग ही निराले हैं..मौसम की बधाइयाँ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता!
जवाब देंहटाएंअच्छी है वर्षा महिमा
जवाब देंहटाएंचमक उठी आंखें कृषक की
जवाब देंहटाएंनव सृजन की आस में।
बहुत अच्छी कविता!
वाह हर्षिता जी ... आपकी कविता की सौंधी महक ने तो दिल हर लिया !
जवाब देंहटाएंवाह हर्षिता जी वाह
जवाब देंहटाएंइन्द्रनील एवं गिरीश जी आपका धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
धन्यवाद पाखी।
जवाब देंहटाएंझूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
जवाब देंहटाएंनर्तन करने लगी बूंदों संग ..
बरखा का आगमन सब को मस्त कर देता है ... सुंदर स्वागत है मौसम का ..
धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी।
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