शनिवार, 26 जून 2010

बारिश


बारिश की पहली बूंदों ने
पत्ता दर पत्ता धो डाला
धूल ,गर्द और मिट्टी
की चादर,बिछी थी
कितने दिनों, सालों, महिनों, वर्षों से
निखर उठे सुकोमल,चटकार रंगों वाले पत्तें।

बारिश की पहली बूंदों से स्पर्शित मिट्टी
सोधी खुशबू से मंहका खेत खलिहान
लाल मखमली कीड़ों ने स्वागत किया बूंदों का
निकल पड़े अगवानी में।

तप्त धरा की प्यास बूझी
खुशी के आंसू बन गए बादल
बरसे घुमड़-घुमड़कर
चमक उठी आंखें कृषक की
नव सृजन की आस में।

झूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
नर्तन करने लगी बूंदों संग
गुनगुनाने लगी सुमधुर संगीत
वर्षा ऋतु के आवन के।

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत नीचे जा कर मिली है आपकी कविता!ऊपर क्या डाल रक्खा है ?
    [<*>]
    बहुत अच्छी कविता!
    वर्षा की तासीर ही ऐसी है कि उसके पासंग मेँ सृजनात्मकता मुखरित हो ही जाती है।धरती क्या समूची प्रकृति ही रचती है नया बहुत कुछ।कवि मन इस से निर्लेप या निरपेक्ष कैसे रह सकता है।वर्षा की बूंदो की प्रवृति आपकी कविता की प्रकृति मेँ ढल गई।बधाई !

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  2. सुन्दर कविता
    बारिश की पहली बूंदों के क्या कहने

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  3. बहुत सुंदर कविता..पहली बारिश के रंग ही निराले हैं..मौसम की बधाइयाँ..

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  4. चमक उठी आंखें कृषक की
    नव सृजन की आस में।

    बहुत अच्छी कविता!

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  5. वाह हर्षिता जी ... आपकी कविता की सौंधी महक ने तो दिल हर लिया !

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  6. इन्द्रनील एवं गिरीश जी आपका धन्यवाद।

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  7. बहुत सुन्दर रचना..बधाई.

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    'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !

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  8. झूम उठी डाली-डाली,पत्ती-पत्ती
    नर्तन करने लगी बूंदों संग ..

    बरखा का आगमन सब को मस्त कर देता है ... सुंदर स्वागत है मौसम का ..

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