बुधवार, 11 नवंबर 2009

चेहरा

--- साधना राय
तेरा चेहरा
अमावस की रात में छिटकती चांदनी
गिरजे-गुंबदों से उठती दुआओं जैसा,
मन को बरबस खींच लेता है।

कशिश आंखों की,
चातक की प्यास जैसी,
हर पल याद दिलाती तेरी।

तेरी हंसी
बिजली-सी कौंध जाती है,
कंपित कर देती
हिय के तारों को।

ओ मेरे मीत !
मत रूठो,
चार दिन रैन बसेरा है,
न जाने फिर हम कहां,
बस याद रह जाएगी।

हंसी तेरी नगीने जैसी,
जड़ ले इन लबों पे,
लुत्फ उठा इन हसीन पलों का,
मृग शावक की किलोल में,
बालपन की निश्छलता में।

दुआ हे मेरी
हंसी से सुहासित कर
ज़िदगी अपनी !!!!
*** ***

8 टिप्‍पणियां:

  1. ओ मेरे मीत !
    मत रूठो,
    चार दिन रैन बसेरा है,
    न जाने फिर हम कहां,
    बस याद रह जाएगी।

    बहुत अच्छी रचना....!!

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी है -
    साधना की हर्षिता!
    बधाई -
    लड़की गोद लेने के लिए!

    जवाब देंहटाएं
  3. न जाने फिर हम कहां,
    बस याद रह जाएगी।

    बहुत अच्छी रचना....!!

    जवाब देंहटाएं