अन्तस्तल की गहराई में
डुबती-उतराती मैं
बन सूरज की नन्हीं किरण
स्पर्श कर, स्पन्दित किया
स्वस्पूर्तित हुई मैं
तुमने कहा मंथन करों
भवसागर के गरल,विषैले नागों
विष दन्त विहिन दानवों का
अमृत सा जीवन,आत्मसात कर
दो शान्ति,प्रेम,भाई-चारा
जीओं और जीने दो
गुंजयमान करो, जग को
शुक्रिया, मेरे सखा,साथी,हमसफर
हमराही,न दूंगी नाम कोई
बदलते जाने-अनजाने रिश्ते को
बन राही
क्षितिज के पार
अनन्त की खोज में
चलने को हूं तैयार मैं
बोलो, दोगे साथ मेरा।
डुबती-उतराती मैं
बन सूरज की नन्हीं किरण
स्पर्श कर, स्पन्दित किया
स्वस्पूर्तित हुई मैं
तुमने कहा मंथन करों
भवसागर के गरल,विषैले नागों
विष दन्त विहिन दानवों का
अमृत सा जीवन,आत्मसात कर
दो शान्ति,प्रेम,भाई-चारा
जीओं और जीने दो
गुंजयमान करो, जग को
शुक्रिया, मेरे सखा,साथी,हमसफर
हमराही,न दूंगी नाम कोई
बदलते जाने-अनजाने रिश्ते को
बन राही
क्षितिज के पार
अनन्त की खोज में
चलने को हूं तैयार मैं
बोलो, दोगे साथ मेरा।
बहुत सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंkya bat hai nirdosh se bhav lage apki rachnaa ke
जवाब देंहटाएंEK AACHI KAVITA
जवाब देंहटाएंwahhh ji wahhh dost aapki kavita main kuch nyapan dekhne ko mila .....iske liye badhae!! likhte rahen ....
जवाब देंहटाएंJai Ho Mangalmay hO
Aachi kavita.
जवाब देंहटाएंअनन्त की खोज में
जवाब देंहटाएंचलने को हूं तैयार मैं
the world is with you
जीवन का मंथन अनंत की खोज में ............ बहुत ही लाजवाब .........
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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