हे माँ शारदे,
वीणापाणी
कमलनयना,
शुभ्रवसना
हंसवाहिनी,
ज्ञान वरदायिनी
तप्त धरा पर
ज्ञानामृत बरसा दे माँ
पल्लवित हो,
नव नित कोपल
हे माँ शारदे.........
झंकृत कर वीणा के तार,
सुना दे ऐसी स्वर लहरी
निर्मम, नृशंस हृदय में,
प्रेमावेग का हो संचार
माँ ऐसा वर दे,
नव नित, नव पल,
शब्दों का हो निर्माण
भाषायी भेद-भाव मिटे,
समरसता का हो संचार
हे माँ शारदे.........
तेजपुंज से तेरे,
धर्मान्धता की धूल हटे
नव जीवन में,
नव मानवता का अंकुर फूटे
“वसुधैव कुटुम्बकम्” से गूंज उठे धरा,
निर्भय हो हर क्षण
ऐसे सधूं साधना में तेरी,
बीते हर पल, हर क्षण
हे माँ शारदे.........
बहुत अच्छी कविता। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंAapka dhanayawad.
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे की इस सुन्दर वन्दना के लिये बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंEk Achi rachna.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ! शब्दों का अद्भुत संकलन
जवाब देंहटाएंमाँ शारदा का सदा यह सन्देश रहा है कि अच्छी पुस्तकें पढ़ें ।
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