रविवार, 13 दिसंबर 2009

दर्द

दर्द
जीवन ही दर्द,दर्द ही खुशबू
जीवन ही विकास,विकास ही मंजिल
हर तरफ ही कोलाहल, दर्द ही अपना
दर्द ही राह, दर्द ही पथिक
दर्द ही शाम, दर्द ही सबेरा
दर्द ही राहत, राहत ही सुकून
दर्द ही तड़प, दर्द ही मिलन
आनन्द ही दर्द, दर्द ही सत्य
सत्य ही सुन्दर, सुन्दर ही शिव।

9 टिप्‍पणियां:

  1. कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  2. आप सबों का बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  3. दर्द और जीवन के रिश्ते को बहुत दार्शनिक अंदाज़ से परखा है अपने ......... बहुत सुंदर .........

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  4. ये दर्द ही ही जिन्दगी हैं मुझे लगता है दर्द के बिना जिन्दगी का मज़ा ही क्या है । सुन्दर रचना शुभकामनायें

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  5. दर्द ही ही जिन्दगी हैं मुझे लगता है दर्द के बिना जिन्दगी का मज़ा ही क्या है । सुन्दर रचना शुभकामनायें

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  6. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
    आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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