गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

तुम कब आओगे

धूल धूसरित शाम
चित्कार उठी जिन्दगी
लहु लुहान हुई इंसानियत
शर्मसार हुई शर्म
गोलियों की बौछार
लालम लाल हुई जमी
रोते बिलखते बुढे,बच्चे,जवान
मन्दिर,मस्जिद,गुरूद्वारे,गिरजाघर
नस्ताबुत हुए,बन गया श्मशान
बन्ध्या हुई जमी,जन्नत की चाह में
दोखज भी न मिला
आर्तनाद से फटा आसमां
पुकार उठे
तुम कब आओगे ।








धूल धूसरित शाम
चित्कार उठी जिन्दगी
लहु लुहान हुई इंसानियत
शर्मसार हुई शर्म
गोलियों की बौछार
लालम लाल हुई जमी
रोते बिलखते बुढे,बच्चे,जवान
मन्दिर,मस्जिद,गुरूद्वारे,गिरजाघर
नस्ताबुत हुए,बन गया श्मशान
बन्ध्या हुई जमी,जन्नत की चाह में
दोखज भी न मिला
आर्तनाद से फटा आसमां
पुकार उठे
कब आओगे तुम।








9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  2. बहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

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  3. आप सभी को क्रिसमस की ढेर सारी बधाई।

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  4. हर्षिता ji
    नमस्कार!

    आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
    से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    Sanjay Bhaskar
    Blog link :-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  5. बेहतरीन रचना के लिए आप को
    बहुत -२ आभार

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  6. Tumhe aur kya doon main shabdon ke sivay.Rab se gujarish hai meri ki apki EMOTIONAL EXPRESSION YATHASHIGHRA PESSIMISTIC BAN jaye.
    Dil ki awaaz ko shabdo ke madhyam se prastut karne ka prayas maulic hai.Anupam prastuti ke liye DHANYAVAD.

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