सोमवार, 3 मई 2010

बरगद


सड़क किनारे खडा़ यह बरगद
देख रहा किसे, न जाने कब वह आएगा।
कई सदियां बीती,सरकारें बदली,ऋतुएं आई
पर तटस्थ दृष्टा बन, देखता रहा............. ।
निर्जन,उपेक्षित सा पडा़, हर पल सोचे ऐसा क्यूं है
औरतें नहीं बांधती रक्षा सूत्र, न मंगल सूत्र।
और न ही जलते धूप-दीप और न चढा़ नैवेद्य
क्या मैं शापित हूं,जात बहिष्कृत या फिर बंन्ध्या
पक्षियों का बसेरा तो है
पानी भी नहीं देता कोई।
फिर भी खडा़ हूं झंझावतों को झेलता
शायद यही है नियति मेरी।
जीना बस, जीते रहना,
सोचना मत, कल क्या होगा।

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना ... वैसे इंसान की नज़र न ही पढ़े तो अच्छा है ...वरना फूल नैवेद्य आये न आये ... कुल्हाड़ी ज़रूर आयेगी

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यंत भावपूर्ण रचना... इस सशक्त कविता की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ..

    जवाब देंहटाएं
  3. ////////////////////////////////////
    ‘‘बरगद के माध्यम से, मुखर हुई पीड़ा।
    आपने उठाया सुचि साहित्यिक बीड़ा।।
    समझदार के लिए रचना अनुपम है।
    कुंदबुद्धि के लिए कुछ भी लिखो कम है।।’’
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
    /////////////////////////////////

    जवाब देंहटाएं
  4. Qudrat hame kya kuchh nahi sikhati!Aadmi bargad kaat dete hain..parinde ise nahi bhoolte..bargadke tale jo mittee hoti hai wah behad upjau hoti hai..Uske areal roots ke karan zameen me natr utarta hai,aur parindo ke karan khaad banta hai...
    Bahut badhiya rachana hai..

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका बहुत धन्यवाद,जो आपने इस रचना पर अपनी टिप्पणी दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत दिनो बाद बरगद का इस तरह कविता मे प्रयोग देखा । एक समय मे बरगद का बिम्ब पूंजीपति के सन्दर्भ मे उपयोग मे लाया जाता था इसलिये कि उसके नीचे कोई पौधा नही पनपता ।

    जवाब देंहटाएं
  7. शरद जी धन्यवाद आपकी टिप्पणी के लिए तथा इतने दिनों बाद आने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  8. puja bhi usi ki hoti hai jo kst sahta hai.............
    yahi brgad ka satya hai.
    bhav sahi pr kavita aasawadi hoti to sundr hota

    जवाब देंहटाएं
  9. एक कविता में बरगद का सन्दर्भ यूँ दिया है...

    नाम करना हो तो ऐसा काम कर
    एक ऊंचे बांस पर तू चढ़ उतर
    डरें वो जिनकी जड़ें हों बरगदी
    अधर में लटके हुए को क्या फिकर !

    जवाब देंहटाएं
  10. अर्थ हीन, फ़िज़ूल का जीवन जीता बरगद....
    भावपूर्ण!

    जवाब देंहटाएं
  11. Kawita Bahut Achi lagi .
    Par Bargad HAMESHA AKELA HI KHADA RAHEGA KYA?
    SAADAR,

    जवाब देंहटाएं
  12. जय श्री कृष्ण.....बहुत खूब....दिल कि आवाज सीधा दिल को पार कर गयी...
    हमने mother's डे पर कुछ लिखा हें ब्लॉग पर .....आपके विचार जान ना चाहते हैं.....
    {आये हम मिलकर उस माँ को याद करे ....
    लबो पर जिसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
    बस एक माँ है जो खफा नहीं होती ---अज्ञात }

    जवाब देंहटाएं
  13. bahut hi gahari baat kahi hai aapne bargad ke ped ke madhyam se.bahut achhi rachna.
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  14. अच्छा रूपक है ।
    सांस्कृतिक व सामाजिक अवमूल्यन की अभिव्यक्ति प्रशंसनीय है ।

    जवाब देंहटाएं
  15. फिर भी खडा़ हूं झंझावतों को झेलता
    शायद यही है नियति मेरी।
    जीना बस, जीते रहना,
    सोचना मत, कल क्या होगा।
    .....Gambhir bhavabhivykti...
    Bahut shubhkamnayne

    जवाब देंहटाएं
  16. पूनम जी,अरूणेश जी एवं कविता जी आप लोग पहती बार मेरे ब्लाग पर आये एवम अपनी टिप्पणी देकर मेरा मनोबल बढाया इसके लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  17. बरगद का पेड़ .... सदियों जीने वाले पेड़ को किसी की ज़रूरत भी नही होती .. पर आस का बादल घूमाड़ता रहता है ....

    जवाब देंहटाएं
  18. दिगम्बर जी टिप्पणी देने के लिए आपका धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं