(मदरस डे के उपलक्ष्य में मैं आज उन सभी मांओं को और जो महिलाएं जिन्हें किन्हीं कारणवश मातृत्व का सुख प्राप्त न हो सका पर उनके अंदर उमड़ते सागरे से भी गहरे मातृत्व की भावना को शत-शत नमन करती हूं। आज के इस बदलते परिवेश में जहां रोजमर्रा की आपा-धापी में वक्त ही नहीं मिलता ख़ुद के लिए, ऐसे में समय निकाल पाना जहां हम अपनों से दूर हैं मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं। चलिए आज शपथ लेते हैं कि कुछ समय के लिए ही सही अपनी जड़ों से जुड़े़,उसे सुखने नहीं दें, वरना हम भी कहीं भाव शून्य न हो जाए। शून्यता निर्जीवता का पर्याय है। ईश्वर की सबसे खुबसूरत धरोहर मानव जो मानवता के बिना अधूरी है,उसे परिपूर्ण बनाएं और आनंदपूर्वक रहें और आज कुकुरमूत्ते की तरह छा रहें विधवा आश्रम एवं बुजुर्ग आश्रम के तादात को रोक सकें और इस धरा की बगियां को प्यार एवं सद्भावना के खाद से सींचे।)
प्रकृति
ज़िस्म
और ज़ान
है मां तूं ।
क्या कहूं
तेरे बिन
कुछ भी
नहीं मैं।
तरस रही
मैं तेरे
आंचल
दूध
हाथों
को।
क्या भूल
हुई, मुझसे
क्यूं ख़फा है
मुझसे।
भूला दिया
तूझे
इन बदलते
चेहरों में।
होश ही न था
जा रही
किन अंधेरी
गुफाओं में
निकल पाना
नामूमकिन है मां।
आ जा, तू मां
पकड़ मेरी
उंगली
ले चल उस
दुनियां में।
जहां न हो
मजबूरियां
बेबसी
तन्हाईयां।
सिर्फ हो
खुशियां ही
खुशियां।
वर्षों से
जगी मैं
सो न सकी
कभी मैं।
सोना है
आज़ मुझे
गोद में तेरे
निर्भय और
प्रकृति
ज़िस्म
और ज़ान
है मां तूं ।
क्या कहूं
तेरे बिन
कुछ भी
नहीं मैं।
तरस रही
मैं तेरे
आंचल
दूध
हाथों
को।
क्या भूल
हुई, मुझसे
क्यूं ख़फा है
मुझसे।
भूला दिया
तूझे
इन बदलते
चेहरों में।
होश ही न था
जा रही
किन अंधेरी
गुफाओं में
निकल पाना
नामूमकिन है मां।
आ जा, तू मां
पकड़ मेरी
उंगली
ले चल उस
दुनियां में।
जहां न हो
मजबूरियां
बेबसी
तन्हाईयां।
सिर्फ हो
खुशियां ही
खुशियां।
वर्षों से
जगी मैं
सो न सकी
कभी मैं।
सोना है
आज़ मुझे
गोद में तेरे
निर्भय और
निर्विकार हो।
वाह अदभुत
जवाब देंहटाएंकल्पना तो जैसे बिन पर ही उड़ती है आपकी रचनाओँ मेँ।अच्छा लिखा है।बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, बहुत कीमती!
जवाब देंहटाएं--
मुझको सबसे अच्छा लगता : अपनी माँ का मुखड़ा!
@ बसे खुबसूरत धरोहर मानव जो मानवता के बिना अधूरी है,उसे परिपूर्ण बनाएं और आनंदपूर्वक रहें
जवाब देंहटाएं--- अति उत्तम विचार।
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत धन्यवाद,जो आपने अपने विचारों से मुझे प्रेरित किया।
जवाब देंहटाएंउत्तम अभिव्यक्ति । साधुवाद साधना जी ।। आपका ब्लॉग बेहद अच्छा लगा और रचनाएं अतिसुन्दर । बधाई ।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नरेन्द्र जी,जो आपने मुझे इस लायक समझा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली
जवाब देंहटाएंभावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद
धन्यवाद....साधुवाद..साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
ईश्वर को याद करना अच्छा है।
जवाब देंहटाएंमाँ को याद करना बहुत अच्छा
है। आपने माँ को याद किया
निश्चय ही यह बहुत अच्छा है।
अच्छी प्रस्तुति हेतु.....बधाई!
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माँ के चरणों में भू है, गगन है।
माँ के चरणों में बसता अमन है।।
और की क्यों करूँ वन्दना मैं-
मातृ-वन्दन ही भगवत् भजन है।।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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maa...
जवाब देंहटाएंek aisa shabd jiske aage kuch aur kehna jaise tuchha sa hai...
bahut hi behtareen.....
dil mein utar gayi...
regards
http://i555.blogspot.com/
harshhita ji, maake baare me jitana bhi ham kahen kam hai. bahut hi marmik kavita.
जवाब देंहटाएंpoonam
वाह साधना जी ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ली हुई रचना है ! मातृत्व को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी हर रचना उतनी ही पाक होती है ....जितनी माँ ......!!
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का हार्दिक धन्यवाद एवं आप द्वारा दी गई टिप्पणियां मेरी प्रेरणा स्तम्भ है।
जवाब देंहटाएं