चांद से मुखड़े पर
उदासी क्यूं छाई
बोलो ना
बसन्त में पतझड़ सी
उदासी क्यूं है।
फाग भी रीता निकला
बसन्त का करो स्वागत
बांह फैला कर
आगोश में भर लो
न जाने दो कहीं
रोक लो।
ग्रीष्म की तपिस
भी न झूलसा सकी
प्यार की कपोले
फिर फुटेगी सावन
के महिने में।
रिम-झिम बारिश
कर देगी सराबोर
सूने कोने को।
फिर लहलहा उठेगा
दिल का सूनापन
फिर खिलेंगे
अरमां के फूल।
शरद के नीले आसमां तले
सजेगी अरमानों की बारात
खुशी के नगमें बज उठेंगे
पिया मिलन की आंस में।
शिशिर की ठिठुरन में
एक हो जाएंगे
होगा इंतजार
नए बंसन्त का
बोलो ना
क्यूं हो उदास।
बोलो ना
क्यूं हो उदास।
ग्रीष्म की तपिस
जवाब देंहटाएंभी न झूलसा सकी
प्यार की कपोले
फिर फुटेगी सावन
के महिने में।
बहुते बढ़िया है। हर मौसम को समेट लिया है अपने।
Manoj ji ne bilkul sahi kaha hai
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसब रंगों को समेत लिया आपने मौसम के ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा ...
आपके सुन्दर कमेन्ट के लिए धन्यवाद नासवा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...एक शानदार और नवरंगी रचना...
जवाब देंहटाएंआलोक साहिल
साहिल जी बहुत धन्यवाद आपका।
जवाब देंहटाएंहर मौसम को समेट लिया है अपने।
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