खुद की तलाश में
क्यूं भटक रहे हैं।
मैं नाम हूं
मैं ज़िस्म हूं
मैं जान हूं
मैं रूह हूं
हम किस गली
से गुजर रहे हैं।
अपना कोई
ठिकाना नहीं।
अपना कोई
फसाना नहीं।
अपनी कोई
मंजिल नहीं।
भटक रहें हैं
मायावी जंगल में।
सब है पर
कुछ भी नहीं।
फिर भी तलाश है
फिर भी प्यास है ।
क्यूं भटक रहे हैं हम
खुद की तलाश में ।
खुद की तलाश में ।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha hamesha khud ko hi talaste rehte hai
nice
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबेहतरीन। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न उछाला है,
जवाब देंहटाएंइस तलाश करती रचना ने!
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मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
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संपादक : सरस पायस
आप सभी का धन्यवाद।
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