शनिवार, 17 अप्रैल 2010

तुम मिले


ज़िन्दगी की राह
में चलते-चलते
यूं एक दिन
अचानक मुलाकात हुई।
ऐसा लगा
जानते हैं, वर्षों से
कुम्भ में बिछड़े
साथी हो जैसे।
बसन्त के फूलों
की तरफ महकाएं
जीवन मेरा।
सूरत इतनी प्यारी
बसा लूं आंखों
चुरा न ले कोई।
खनकती है आवाज़ ऐसे
सुनती रहूं हर पल
मासूम दिल है इतना
प्यार करती रहूं हर क्षण।
दुआं कर इतना मौला
साथ न छूटे कभी
बता ऐ साथी
दोगे साथ हमारा।



11 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी की राह
    में चलते-चलते
    यूं एक दिन
    अचानक मुलाकात हुई।


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. कुम्भ में बिछड़े
    साथी हो जैसे।
    बढ़िया है।
    निंदक नियरे राखिए,
    ऑंगन कुटी छवाय।
    बिन पानी, साबुन बिना,
    निर्मल करे सुभाय।।

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  5. शुक्रिया इतनी उम्दा कविता ्पढवाने के लिये
    पुन: बधाईया

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  6. आप सभी की प्रतिक्रियाओं को लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  7. इतनी मासूम सी कविता ,क्या बात है !!
    मन मोह गयी ये प्रस्तुति

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  8. अलका सार्वत जी आपका धन्यवाद टिप्पणी देने के लिए।

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