ज़िन्दगी की राह
में चलते-चलते
यूं एक दिन
अचानक मुलाकात हुई।
ऐसा लगा
जानते हैं, वर्षों से
कुम्भ में बिछड़े
साथी हो जैसे।
बसन्त के फूलों
की तरफ महकाएं
जीवन मेरा।
सूरत इतनी प्यारी
बसा लूं आंखों
चुरा न ले कोई।
खनकती है आवाज़ ऐसे
सुनती रहूं हर पल
मासूम दिल है इतना
प्यार करती रहूं हर क्षण।
दुआं कर इतना मौला
साथ न छूटे कभी
बता ऐ साथी
दोगे साथ हमारा।
शुक्रिया
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की राह
जवाब देंहटाएंमें चलते-चलते
यूं एक दिन
अचानक मुलाकात हुई।
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकुम्भ में बिछड़े
जवाब देंहटाएंसाथी हो जैसे।
बढ़िया है।
निंदक नियरे राखिए,
ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना,
निर्मल करे सुभाय।।
सुन्दर कविता है ! बधाई !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इतनी उम्दा कविता ्पढवाने के लिये
जवाब देंहटाएंपुन: बधाईया
आप सभी की प्रतिक्रियाओं को लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइतनी मासूम सी कविता ,क्या बात है !!
जवाब देंहटाएंमन मोह गयी ये प्रस्तुति
अलका सार्वत जी आपका धन्यवाद टिप्पणी देने के लिए।
जवाब देंहटाएंBehad sundar aur masoom alfaaz!
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